कोटुममारी ( भाग - एक )

Gond Gotul


फरवरी 2019 के बाद अबुझमाड़  के लिए ये मेरा दूसरा सफ़र था पहला सफ़र में मैं कोई खाश अनुभव नही बना पाया क्यूंकि हम लोग अबुझमाड़  सीमा  के आस – पास से ही होकर वापस आ गये थे पर इस बार अबुझमाड़  सीमा  के अन्दर एक गाँव तक गये थे, सच कहूँ तो अबुझमाड़  के लिए इस बार का सफ़र मेरे लिए काफी रोमांचक रहा और अबुझमाड़  को जानने समझने की जो ख्वाहिश था आधा पूरा हो गया ।

कई महीने की कोशिश के बाद आखिरकार वह दिन आ गया जब मैं फिर से एक बार अबूझमाड़  को जानने समझने के लिए जाने वाला था मन में उत्सुकता इतनी थी की मैं अपने ग्रुप में एक दिन पहले ही जाने के लिए तैयारी कर लिया था। दुसरे दिन हम लोग घर से सुबह 9 बजे के आस – पास पांच बाइक से कोयलीबेडा के लिए निकल गये और वहां से पांच किलोमीटर एक गाँव गये जहाँ से हमारे साथ पांच लोग और शामिल हुए उनमे से दो लोग गाईड थे जिनके साथ हम लोग अबुझमाड़  जाने वाले थे ।
गाँव से हम सभी लोग बाइक से घने जंगल की ओर निकल गये रास्ता साफ़ और समतल था इस लिए हम सब की बाइक एक ही गति से चल रही थी और हम सब हंसी – ठिठोली करते हुए आगे बढ़ रहे रहे थे । कुछ देर बाद रास्ता की शक्ल उबड़ – खबड़ में बदलने लगा अब हम धीरे हो गये और रास्ता भी सकरा होते जा रहा था रास्ते के दोनों तरफ छोटे बड़े पेड़ के कारण गाडी चलाने में परेशानी हो रहा था कुछ दूर चलने के बाद रास्ते में एक पेड़ गिरा हुआ था हम लोग उसके बगल से आगे बढ़ गये ।  हम लोग जैसे – जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे – वैसे रास्ता और भी ख़राब हो होते जा रहा था कही – कही पर रास्ता इतना ख़राब था की उस रास्ते से दो लोग मोटरबाइक से नही जा सकते थे इस स्थिति में बाइक में पीछे बैठा व्यक्ति उतर कर पैदल कुछ दूर चलता था इस बीच बाइक चलाने वाला व्यक्ति आगे निकल जाता था और आगे अच्छे रास्ते में पहुँच कर इंतज़ार करता फिर जब हम लोग पहुंच जाते तो साथ में फिर आगे बढ़ जाते ये सिलसिला कई बार चला क्यूंकि रास्ते में कई छोटे – छोटे नदी भी पार करना पड़ा ।
हम धीरे – धीरे आगे बढ़ रहे थे फिर हमे रास्ते के बगल में एक स्मारक चिन्ह मिला जिसे दादा ( नक्सली ) लोगो ने बनाया था पर वह ढह गया था हम लोग उस स्मारक के पास कुछ देर एक पेड़ के छाव में रुक गये क्यूंकि हमारे कुछ साथी पीछे छुट गये थे रुकने के कुछ देर बाद मैं बैग से पानी की बोटल निकाल कर पिने लगा इतने में  पीछे रह गये लोग भी आ गये फिर हम सभी बाइक से धीरे – धीरे जाने लगे ।  छोटे - बड़े पेड़ रास्ते को सकरा बना रखे थे बाइक को चलाने में दिक्कत हो रहा था करीब एक घंटा हम लोग बाइक से जाते रहे फिर एक नदी मिला जिसके पास रुक गये. इधर उबड़ – खाबड़ रास्ते के कारण हम सभी का शरीर भी अपना ज्वाब दे रहा था और इधर सूरज भी ढलने वाला था इस लिए हम लोग उसी नदी के किनारे रात में रुकने के लिए डेरा बनाने में जुट गये 

हम लोग अधेरा होने से पहले ही रात की सभी व्यवस्था कर लिया कुछ लोग खाना बनाने में जुट गये और कुछ लोग सब्जी बनाने में जुट गये, कुछ देर बाद मैं गाईड से पूछा की यहाँ आस - पास मोबाईल नेटवर्क आता है क्यूंकि मुझे घर में बात करना था फिर हम दो लोग एक गाईड के साथ उचाई तरफ जाने लगे जो नदी के दुसरे तरफ था नदी ज्यादा चौड़ी नही थी इस लिए हम जल्दी नदी के दुसरे किनारे पहुँच गये अब हम गाईड के पीछे – पीछे पहाड़ में चढ़ने लगे, मैं अपना जुता पीछे छोड़ आया था क्यूंकि मेरे पैर जुते के कारण सुन जैसा प्रतीत हो रहा था थोड़ा अँधेरा सा हो गया था इस लिए मैं अपने मोबाईल का फ्लैश चालू किया ताकि पैर को कुछ न लगे ।  कुछ दूर ऊपर चढ़ने के बाद अपने मोबाईल को ऊपर उठाकर कर चढ़ने लगा फिर अचानक मोबाईल में एक के बाद एक मैसेज आने लगा मैं ख़ुशी से दोस्त को बोला यार जिओ का नेटवर्क आ गया दोस्त भी अपने मोबाईल को ऊपर उठाने लगा शायद उसके मोबाईल में नेटवर्क नही आ रहा था सिगनल ख़राब था पर थोडा बहुत बात हो गया मैं इंटरनेट भी चालू कर लिया, मेरा दोस्त भी कॉल में बात करने लगा, कुछ देर बाद ही हमारे गाईड ने यहाँ से चलो बोला, हम दोनों कुछ बोले बिना ही वापस जाने के लिए तैयार हो गये क्यूंकि अँधेरा भी था ।  गाईड जल्दी – जल्दी ऊपर से निचे उतर रहा था हम लोग भी उसके पीछे ही उतर रहें थे जब हम लोग ऊपर से थोड़ा समतल जगह पर आये तो गाईड ने हमे बताया की ऊपर में भालू हमारे तरफ ही आ रहा था और मैं इस बात को इस लिए नही बताया क्यूंकि अगर मैं यह बात बताता तो तुम दोनों डर जाते और डर के कारण उपर से गिर भी सकते थे मैं जैसे ही भालू के बारे में सुना वैसे ही मेरे कान खड़े हो गये और रुहे भी खड़े हो गये क्यूंकि मैं भालू के बारे में बहुत कुछ पहले ही सुना था वैसे मैं पूरी तरह से डरा तो नही था पर पीछे मुड कर बार – बार देख रहा था 

हम लोग वापस हमारी ठीम के लोगो के पास पहुँच गये तब तक खाना तैयार हो गया था कुछ देर  मौज मस्ती करने के बाद खाना खाने की तैयारी में जुट गये, खाना खाने के बाद अब सभी अपने – अपने लिए सोने की व्यवस्था करने लगे ।  हमारे साथ दो लोग बाहर राज्य से थे एक दिल्ली से और दूसरा केरल से जिनके लिए मैं अपने साथ दो मच्छरदानी ले के गया था ताकि उन दोनों को किसी तरह की परेशानी न हो हम नदी के किनारे पेड़ के नीचे सोने के लिए बिस्तर बनाये थे बगल में आग जल रही थी ताकि कोई जंगली जानवर हमारे पास न आये, अबुझमाड के लिए ये मेरा दूसरा सफ़र था इस लिए मुझे ज्यादा डर तो नही लग रहा था पर मन में सिर्फ एक ही ख्याल आ रहा था की अगर इधर से bsf या पैरा मिलेट्री गस्त में गुजरेगा  तो हम सब नक्सलियों में गिने जायेंगे और दुसरे दिन अखबार के प्रथम पृष्ट में हम सब की फोटो होगी, खैर ये सोचते – सोचते मुझे नीद आ गई और रात में दो बार नीद भी खुली मैं दोनों बार उठ कर आग को देख कर सो जाता था क्यूंकि टीम के लोग बताये थे की आग जलाने से जंगली जानवर पास नही आते ।   
सुबह मैं टाइम से पहले से ही उठ गया शायद जंगल में सोया था इस लिए वैसे मैं कह नही सकता की यही सही है पर मुझे यही लगा, मैं अपने साथ सुबह के लिए ब्रश लेकर गया था क्यूंकि मुझे दातुन की आदत नही है मेरे लिए घने जंगल के बीच यह सब कभी नही भूलने वाला पल था । 
जब सभी लोग फ्रेस हो कर वापस जगह पर आ गये तो कुछ लोग नास्ता बनाने में जुट गये और हम कुछ लोग नहाने चले गये और जब नहा कर वापस आये तो रात का बचा खाना खाए ताकि हम लोग आगे की सफ़र तय कर सके,
हम लोग जब खाना खा रहे थे तो हमारे गाईड ने बताया की रात में हमारे पास में भालू आया था पर बिना कुछ किये चला गया,
हम लोग खाना खा कर बर्तन साफ़ करने लगे अब हमे आगे की सफ़र के लिए निकलना था हमारे पास सामन ज्यादा था और अब हमे यहाँ से पैदल सफ़र करना था हम जिन मोटर बाइकों से आये थे उसे एक पेड़ के छाव में खड़े कर दिए और आगे की सफ़र में निकल गये चावल कपडे औए कई जरूरत के सामान हम सभी को भारी पड़ने वाला था मुझे चावल और खुद के कपडे पकड़ना था, मैं चावल और कपडे को एक लकड़ी के दोनों छोर से बांध कर कंधे में लटका कर चलने लगा. दो छोटे – छोटे नदी पार किये अब हमारे सामने एक पहाड़ था जिसमे चढाई करना था हम लोग एक नदी को सहारा बना कर उसी नदी के साथ – साथ चड़ने लगे नदी में छोटे – बड़े कई झरने मिले जो मन को लुभाने वाले थे, साफ़ पानी और झरना को देख कर बार- बार नहाने को मन करता था,  हम लोग जैसे – जैसे ऊपर चड़ने लगे वैसे – वैसे ऊपर चड़ने में और भी कठिनाई होने लगा


मार्च का महिना था गर्मी उतनी नही थी फिर भी पूरा शरीर पसीना से भीग जाता था जब हम लोग चलते – चलते थक जाते थे तो झरने के पास रुक जाते और अगर प्यास लगती तो  झरने के  पानी पिते और झरने में नहाते यह सिलसिला ऊपर चढ़ते तक चलता रहा  झरने की पानी इतना साफ़ होता की हम हर बार गहराई भापने में ठगे जाते थे क्यूंकि साफ़ पानी के कारण गहराई भी गहराई जैसा प्रतीत नही होता था, हम लोग नदी के साथ – साथ ऊपर चढ़ रहे थे छोटे – बड़े पत्थर सफ़र को और भी मुश्किल बना रहे थे फिर भी हम लोग धीरे – धीरे ऊपर चढ़ रहे थे लगभग सात किलो मीटर ऊपर चढाने के बाद हमे समतल भाग मिला मेरा पैर भी दुःख रहा था इस लिए मैं समतल जगह में जैसे ही पहुंचा वैसे ही अपने जुते को निकाल कर जो लकड़ी पकड़ा था उसमे लटका दिया और चलने लगा अब हम लोग बांस के  एक बड़े मैंदान से गुजर रहे थे जिधर  देखो उधर बांस ही बांस नजर आ रहा था पर बतकिस्मती  यह थी की सारे बांस के फुल आ गये थे और बांस में फुल आने के बाद बांस मर जाता है हम लोग जिस क्षेत्र से गुजर रहे थे वह क्षेत्र सरकारी तन्त्र के नजर से कोसो दूर था शायद इस लिए बांस अंतिम साँस ले रहे थे नही तो सरकार उन बांस को काट कर अपनी जेब भरने में पीछे नही रहता जब हम लोग बांस के मैदान को पार किये तो हमे एक खेत दिखा, जब मैं खेत को देखा तो मन को थोडा ठंडक पहुंचा क्यूंकि हम सब लोग पूरी तरह से थक गये थे और ऊपर से मेरे कंधे भी दर्द कर रहा था क्यूंकि मैं चावल और कपड़ो को लकड़ी के सहारे कंधे में पकड़ा था सच कहूँ तो मैं पहली बार लम्बी दुरी तक कंधे के सहारे सामान को उठा कर चल रहा था,


हम लोग चल ही रहे थे की सामने खेतो के बीचो – बीच एक झोपडी दिखा मेरी भाषा में “लाडी” जिसे शहरी लोग फॉर्म हाउस कहते है मन में उत्सुकता और बड़ने लगा और मन को ठंडक भी पहुंचा, मेरा हाँथ पैर दर्द भी कर रहा था पर अन्दर ही अन्दर ख़ुशी भी महशुस हो रहा था,
मैं गाईड से पूछा की अब हम लोग कहाँ पर हैं ? गाईड ने बताया की हम लोग कांकेर जिले के अंतिम छोर पर हैं अब मैं समझ गया की यही से घोर अबुझमाड़ शुरू होता है जहाँ दादाओ का राज है  


#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!