आने वाली पीढ़ी के लिए हम एक बेहतर दुनिया बनाएंगे - ज्योति

Gond Gotul
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कइयो को अब भी हक नहीं है की वो अपने पसंद के कपड़े पहन पाए



मेरे गांव में अब भी कई लोग (उम्रदराज महिलाएं) अपने लुगरा (साड़ी) से ही उभारों को ढककर पहनते हैं, एवन मेरी दादी भी उनमें से एक हैं उन्हें ना कभी किसी ने टोका ना कभी किसी ने छेड़खानी की फ़िर भी सेफ हैं आज भी उन्हें कहीं जाना होता है,वो वैसे ही अकेले निकल पड़ते हैं। पिछले साल जब गांव गई थी तो मुझे देखकर मां से कहने लगें लड़की को चुन्नी/स्कार्फ साथ रखने के लिए कहा करो बड़ी हो गई और अब तक चुन्नी पकड़ना नहीं सीख पाई, वहीं दादी जिन्हें अपने लिए कभी डरा नहीं पर मेरे लिए...? मैंने कहा मुझे नहीं रखना चुन्नी - चन्ना, झलर - झपट मुझसे ठीक से संभाले नहीं जाते। (कइयो को अब भी हक नहीं है की वो अपने पसंद के कपड़े पहन पाए.. ख़ैर सूट पैजामा साड़ी सबके अपने अपने पसंद) फ़िर कहने लगे" मुंहजोरी में तो तुझसे कोई नहीं जीत सकता कभी मान लिया कर दादी की बातें,
क्योंकि गांव अब अछूता नहीं रहा संचार क्रांति से हर छोटे - बड़े बच्चे सबको पता हैं किसका क्या मतलब होता है समय से पहले ऐसी चीज़ों को देखकर किसी भी बच्चे या संवेदनशील इंसान देख लें तो दिमाग़ में गहरा असर हो, मन परेशान हो। सब सेक्स एजुकेशन की बात बस करेंगे पर कोई जिज्ञासावश कुछ पूछ लें हाय तौबा मच जाती है। फ़िर वही उनके लिए अलग नशा बन जाता है और हमारे लिए कुछ गाइडलाइंस तय की जाती है तीन चार परत से अपने शरीर ढक भी लें फ़िर भी उनकी गंदी नज़र से बच नहीं सकते हम कैसे कपड़े पहनें किस मेहमान के साथ कैसे पेश आएं कहां कैसे उठे बैठे चलें फिरे अपनी ज़ुबान खोलें, पैदा होने के साथ ही यह पाठशाला भी शुरू हो जाती हैं मानसिकता ऐसी बनाई जाती है कि हमारे प्रति गलती में भी हम हमारे लिए सही हो रहा है, सब सही हैं यही मान के चलते हैं।
आए दिन रेप की ख़बरें,और ख़बरें भी कैसी..! पढ़ा भी नहीं जाता कई कई बार किसी को नहीं बक्षते कहां से आते हैं ऐसे दरिंदे कैसे पहचाना जाएं इन्हें इतनी दरिंदगी जानवर भी नहीं करते मानवीय संवेदनाएं मरती ही जा रहीं। मिजाज़ ऐसा होता जा रहा लाख़ भले इंसान को भी शक की निगाह से देखने लगीं हूं
एक लड़की के लिए इतनी हिंसक व्यवहार कैसे प्रवृत्ति के लोग होते होंगे भद्दे कॉमेंट्स,थोड़े से मोटे रहें तो कसाई की नज़र से देखना पतले हैं तो हीन भावना(असल में इन्हीं लोग तय करते हैं हमारे शरीर का मापदंड) से देखेंगे राह चलते खुले आम मां बहन के गाली जैसे उन पे उन्हीं का कॉपीराइट हैं,गंदे से घूरना उभारों पर नज़रे गड़ाए रखना। मेरे लिए ये नया नहीं है. मैं जब जब बाहर निकलूं तब तब होना ही हैं वाइन शॉप और मेरे घर का रास्ता एक ही रास्ते पर से गुजरता हैं..रास्ते के दुकानों में कुछ खरीदते वक़्त घर आते वक़्त वॉक पे निकलते वक़्त, लाल लाल आंखें उनकी। ये आंखे मुझे कभी नहीं डराती ना मैं कभी इनसे डरती हूं ना ही कभी डरूंगी गुस्से से हमेशा कांप उठती हूं और हमेशा पूरे आवाज़ में उन पे चिल्लाती हूं चाहे मार्केट में रहूं किसी शॉप पे या अकेले किसी रोड पे...ये वहीं हैं जो पहले भी किसी के साथ ऐसी बदतमीज़ी कर चुके हैं पर वहीं न चुप रहना इग्नोर करना, प्लीज़ इन जैसे को कभी इग्नोर ना करें चाहे वो कोई भी क्यों ना हो! ये भी नहीं की आप उनकी हर बातों का रिस्पॉन्स दें,पर जहां असहनीय लगें वहां कभी चुप ना रहें।एक आवाज़ ही हमारी हिम्मत हैं हमारे लिए कोई नहीं लड़ने वाले सो कॉल्ड सोसायटी को सिंपैथी दिखाने के अलावा और कुछ भी नहीं आता, ख़ुद अपने लिए रिस्पॉन्सिबल बनिए,दादा भाई,अब्बा ब्वॉयफ्रेड मेल फ्रैंड के भरोसे रहने से बेहतर ख़ुद में वो भरोसा लाइए।

जब हम ख़ुद से ही विरोध करेंगे अपने बहनों को सिखाएंगे किसी की भी हिम्मत नहीं होगी हम पे छींटाकसी करने की यार ऐसे भी तो मरना ही हैं न रोने गाने दुःख प्रकट करने से बेहतर छोटे छोटे बदलाव ख़ुद से ही लाते हैं।अपनी बहनों के लिए एक बेहतर दुनिया हम ही बनाएंगे।



सोशल मीडिया में उभरते होनहार लेखिका ज्योति मरकाम महिलाओं से जुडी  मुद्दों को बेबाकी से फेसबुक जैसे प्लेटफार्म में रखती है आप ज्योति मरकाम के फेसबुक से जुड़ना चाहेंगे ? ज्योति मरकाम 

 

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