कोयमा गड / कोयामर्री दीप - आज से कई बरस पहले जब धरती का क्रमिक विकास हो रहा था उस बीच ज्ञानी मानव / होमोसेपियन्स अस्तित्व में आये और धीरे - धीरे मानव का विकास शुरू हुआ मानव के अस्तित्व में आने से पहले बिना रीढ़ की हड्डी वाले जीव,घास, मछलियां, डायनासोर एवं आकाश में उड़ने वाले जीव पैदा हुए,
इस धरती / दिप्पा / बुम / भूभाग में जब मानव का क्रमिक विकास की शुरुआत हुई उस समय मानव खाना बदोशी जीवन व्यतीत कर रहा था
मानव क्रमिक विकास ओर
1. मानव केतुल / कबीलाई अवस्था में आये
2. गोडुम कृषि की शुरुआत हुई
3. मानव रहने के लिए घर बनाने लगा
4. नार्र परम्परा का विकास हुआ
5. कोया पुनेम अस्तित्व में आया
6. लोग तार्किक होने लगे ( लिंगो )
7. गोटुल अस्तित्व में आया
8. सभ्यता विकसित होने लगा ( सिन्धु घाटी )
9. टोटम पध्दति का विकास हुआ
इरूम पुंगार,कोया जन जीवन की आधारशिला
इरूम मरा ( महुआ पेड़ ) उष्णकटिबंधीय वृक्ष है यह अधिकतर मैदानी इलाकों और जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। इरूम मरा का वैज्ञानिक नाम मधुका लोंगफोलिआ है। यह विश्व का एक ऐसा पेड़ है जिसके पुष्प को सुखा कर सौ साल से भी ज्यादा रखा जा सकता है, इरूम मरा के पुष्प / पुंगार सूखने के बाद और भी ज्यादा खुशबूदार बन जाता है, और इसके पुष्प को सौ साल बाद भी अगर पानी में डाला जाय तो पुन ताजा होकर पहले की अवस्था में आ जाता है। इरूम पुंगार की यही खुबिया कालांतर में कोया जन जीवन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है क्यूंकि उस समय कोया मानवो के पास विकट परिस्थिति में सिर्फ इरूम पुंगार ही था जिसे हिम पात के समय गुफाओं के अन्दर ही रहकर खाया जा सकता था। आकाल के समय इरूम पुंगार की रोटी बनाकर खाया जाता था। इसमें प्रोटीन, शुगर, कैल्शियम, फास्फोरस और वसा होती है। जो शारीर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।- इरूम पुंगार स्वास्थ वर्धक, बल वर्धक, पाचन में सहायक, लम्बी उम्र बढ़ाने का एक प्राकृतिक फुल है
- इसके पकवान के सेवन से शरीर के रोग प्रतिरोधक की क्षमता बड जाता है
- इरूम पुंगार के सेवन से दांत मजबूत रहता है
