विज्जा बैंक, बीज संरक्षण के लिए बनाया गया तकनीक
दुनिया में असंख्य जीव - जन्तु,वनस्पति मौजूद हैं जिनके जीर्र (DNA) में करोड़ों वर्षों से ज्ञान ( बुद - गोण्डी लैंग्वेज में ) कोडिंग होते आ रहा है। इन जीव - जन्तु व वनस्पतियों के जीर्र में कोडिंग ज्ञान मानवों विवेक बुद्धि से हजारों गुना ज्यादा प्रभावशाली होता है, इसलिए पुरुड़ (प्रकृति) के सेवक आदिवासी जीव - जन्तु, वनस्पतियों को बेहतर तरीके से समझते हैं। अतः आज के आधुनिक विज्ञान विवेक बुध्दि के युग ने मनुष्य जीवन को सरलता बनाने के साथ - साथ प्रकृति के नियमों को उलट - पलट कर रख दिया है, दुनिया के इस भयानक परिस्थिति को सहज बुध्दि के लोग को + या = कोया, कोयतुर, कोया मनवाल समझ गया और मानव जिर्र को खराब होने से बचाने के लिए तथा जिर्र को सुरक्षित पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण करने लिए आज से सदियों पहले टोटेमिक व गोत्र व्यवस्था का रचना पहांदी पारी कुपार लिंगो द्वारा किया गया है, ठीक उसी प्रकार के.बी.के.एस. विज्जा बैंक (बीज संरक्षण केन्द्र) में विभिन्न पारम्परिक कोया फसलों व अन्य सभी वनस्पतियों के जीर्र जर्मप्लाज्म को भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखने का स्थान विज्जा बैंक रोफरा ग्राम खैरखेड़ा में बनाया गया है।
विज्जा बैंक विभिन्न फसलों के विभिन्न टेम्प्रेचर, मॉइस्चर के आधार पर लम्बे समय तक बीज के जीर्र को सुरक्षित रखने का एक कोयतोरिन तकनीक है, जिसमे मुख्य रूप से बीज, स्टेम, राइजोम, एम्ब्रॉय, जर्मप्लाज्म, सोमेटिक सेल इत्यादि को सालो सुरक्षित रखा जाता है।
हमारे बीच दुनिया की प्रथम आधुनिक विज्जा बैंक सन - 1894 में रसिया में बना, लेकिन सीड बैंकिंग टेक्नोलॉजी की शुरुआत हमारे महान प्रावैज्ञानिकों पुरखो के द्वारा किया गया है जो - दादा के...., दादा के..., दादा के..., दादा के..., दादा के...., दादा के...दादाओं द्वारा हजारों साल पहले विकसित है।
जो आज हमारे बीच कोयतोरिन टेक्नोलॉजी में टेडा / चिपटा, ढोलंगी, ढुसी या अन्य रूप में मौजूद हैं जिसके माध्यम से हमारे कोयाद्विप के लोग बीज के जीर्र को सरंक्षण करते आ रहे हैं।
विज्जा बैंक” की जरूत क्यों?
आज के आधुनिक विज्ञान ने जेनेटिक्स इंजेनीरिंग के द्वारा फसलों (वनस्पतियों व एनिमल्स) के जिर्र से कुछ गुण ( लक्षण ) को अलग - थलग कर देते हैं जिससे उस वनस्पति व जन्तु के करोड़ों वर्षों से DNA में कोडिंग ज्ञान, प्राकृतिक गुण खत्म होता है। जिससे धीरे - धीरे उस जिर्र की प्रजातियाँ ही खत्म हो रहा है, जीव - जन्तुओ, वनस्पतियों में यह DNA कोडिंग प्रक्रिया प्रकृति को असंतुलन की ओर ले जा रहा है जो एक दिन इस पुरुड / प्रकृति के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। इस लिए कोया दीप के लोग सदियों पहले डेडा व “विज्जा बैंक” का आविष्कार किये जो पृथ्वी पर सन्तुलन बनाये रखने में गतिशील है।
कोयतोर परम्परा में कोयतुर किसी भी प्रकार के बीज को परिपक्वता के पश्चात ही उपयोग में लाता है यानी पंडुम (प्रथम परब - विज्जा पंडुम) बना कर पुरखों को अर्पित करता है। यदि हम इस पंडुम को वैज्ञानिक रूप में जाने तो अलग - अलग फसलों के अलग - अलग कैमिकल कॉम्पोनेंट होते है। ये केमिकल अपरिपक्वता से पहले हानिकारक होते हैं जैसे:- मरका,कोहका,रेका, हिता, कुसिर इत्यादि! और इससे बचने के लिए पुरखों (पूर्वजों) ने पंडुम व्यवस्था बनाकर बीज संरक्षण व बीज को अनन्त पीढ़ी तक हस्तांतरित करने की वैज्ञानिक सम्मत व्यवस्था बनाये है।
कोयतोर परम्परा में कोयतुर किसी भी प्रकार के बीज को परिपक्वता के पश्चात ही उपयोग में लाता है यानी पंडुम (प्रथम परब - विज्जा पंडुम) बना कर पुरखों को अर्पित करता है। यदि हम इस पंडुम को वैज्ञानिक रूप में जाने तो अलग - अलग फसलों के अलग - अलग कैमिकल कॉम्पोनेंट होते है। ये केमिकल अपरिपक्वता से पहले हानिकारक होते हैं जैसे:- मरका,कोहका,रेका, हिता, कुसिर इत्यादि! और इससे बचने के लिए पुरखों (पूर्वजों) ने पंडुम व्यवस्था बनाकर बीज संरक्षण व बीज को अनन्त पीढ़ी तक हस्तांतरित करने की वैज्ञानिक सम्मत व्यवस्था बनाये है।
कोयतोरिन कमाय डेरा (कृषित क्षेत्र) से लोन,रचा, आवर, गोण्डरी, गोडुम दिप्पा, वेडा - डोडा, कड़ा,(कोठार), कोठी, एग्रीकल्चर सिस्टम में विज्जा बैंक महत्त्वपूर्ण अंश है साथ ही पूरी दुनिया मे विज्ञान युग के समय मे प्रकृति संतुलन के लिए “विज्जा बैंक” जर्मप्लाज्म स्टोरेज बहुत जरूरी है। यदि फसलों के जीर्र को संरक्षण करने में असफल हुए तो साठ के दशक चीन में हुई मानवीय आपदा के समान जीव जंतुओं व वनस्पतियों की विलुप्ति व अकाल की स्थिति पैदा हो सकता है। जिससे नेशनल इकोनॉमिक्स व वल्र्ड इकोनॉमिक्स का ग्राफ नीचे गिरेगा।
दुनिया के वैज्ञानिकों, रिसर्चरों, शास्त्रियों व समस्त मानव समुदाय को इस से सहमत होना पड़ेगा कि “ट्राइबल ही इस पृथ्वी को बचा सकता है” अन्यथा यह सम्भव नही है, इसलिए मुझे गर्व होता है कि मैं ट्राइबल हूँ और मैं दुनिया के वैज्ञानिकों को मात देते हुए कह रहा हूँ यदि इस पृथ्वी को बचाना है तो जीव - जन्तु, वनस्पतियों के करोड़ों वर्षो से उनके डीएनए में कोडिंग ज्ञान से छेड़छाड़ ना करे, प्रकृति के नियमों का उल्लंघन ना करे।
दुनिया के वैज्ञानिकों, रिसर्चरों, शास्त्रियों व समस्त मानव समुदाय को इस से सहमत होना पड़ेगा कि “ट्राइबल ही इस पृथ्वी को बचा सकता है” अन्यथा यह सम्भव नही है, इसलिए मुझे गर्व होता है कि मैं ट्राइबल हूँ और मैं दुनिया के वैज्ञानिकों को मात देते हुए कह रहा हूँ यदि इस पृथ्वी को बचाना है तो जीव - जन्तु, वनस्पतियों के करोड़ों वर्षो से उनके डीएनए में कोडिंग ज्ञान से छेड़छाड़ ना करे, प्रकृति के नियमों का उल्लंघन ना करे।
लेखक :- नयताम तुलसी
कोयतोरिन टेक्नोलॉजी, कोया पुनेम,गोटुल एजुकेशन सिस्टम व ए. डी. डब्ल्यू. KBKS उ.ब. काँकेर




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