आदिकाल में हमारे पूर्वज कड़कडाती ठण्ड से बचने के लिए "इरूम मरा" ( महुआ ) के बीज से तेल निकाल कर अपने शरीर में लगाते थे आइये "इरूम मरा" के बारे में जानते है ।
हिमयुग के कड कडाती ठण्ड का सामना करने की तकनीक और गोण्डीयन इकोनॉमी का प्रसिद्द निर्यात केंद्र और सिंधु सभ्यता का सौन्दर्य प्रसाधन इरूम मरा के बीज से निकलने वाला "नीय" (तेल ) मानव विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते आया है ।"नीय"(तेल) मानव जाति का एक क्रान्तिकारी खोज है जिसका श्रेय हम आदिवासियो को ही जाता है , यह तृतीय व चतुर्थ हिमयुग की सामना करने के लिए गुफाओ मे रहने की तकनिक की तरह महत्वपूर्ण है, जब मानव सभ्यता की शुरुआत धरती पर हो रहा था उस समय इस धरती पर हिमपात के कारण कडकडाती ठण्ड होता था, उस समय मानव ठण्ड से बचने के लिए गुफाओं में रहते थे और इसी बीज मानव ठण्इड से बचने के लिए गारानीय तेल की खोज किया, इसकी शुरूआत "पुक नीय"(शहद तेल) से होकर "गारा नीय"(महुआ टोरी तेल) "जाड़ा नीय "(अरण्डी का तेल),"कोसुम नीय" (कोसुम तेल) आदि से हुआ है , पर इन सब में से "गारा नीय"(टोरी तेल) ने विशाल गोंडवाना के जीवन को एक नव गति प्रदान किया है, गारा नीय हिम पात के दौरान "कोया समुदाय को गुफाओ से बाहर की जीवन शैली विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है दरअसल गारा नीय मे एक "जेली " की तरह लसलसा तेल बनता है जिसे शरीर पर लगाने से शारीरिक ऊष्मा के दर को बड़ा देता है वही दुसरी ओर बाह्य ठण्डकता को त्वचा के अन्दर प्रवाहीत होने से रोकता है इसी कारण "टोरी तेल" लगाने से ठण्डी मे गर्मी का एहसास होता है ,
सब्जी बनाने की तकनीक
कोयतोर समुदाय जैसे - जैसे विकास की ओर बढने लगा उसके जरूरते और भी बढने लगी जिसके लिए कोयतोर समुदाय ने कई वैकलिप खोज निकाले , वक्त के साथ कोया समुदाय सब्जी बनाने में टोरी तेल को भी उपयोग करने लगा क्यूंकि टोरी तेल में ओमेगा -3 एसीड पाया जाता है इस लिए इस तेल से "कुसीर" (सब्जी) फ्राई भी किया जाने लगा, इस तकनीक ने गोण्डीयन मानवो की शारीरिक संरचना व रोग प्रतिरोधक क्षमता को सतत् मजबूत बनाया।आग जलाने में
कोयतोर समुदाय रात के अधेरो से बचने के लिए आग जलाने लगा और आग जलने के लिए टोरी तेल का प्रयोग किया जाने लगा, और आज भो कोयतोर समुदाय दिए जलाने के लिए गारानीय ( टोरी तेल ) का उपयोग करता है
सौंदर्य प्रसाधन
कालांतर में "गारानीय" गोण्डीयन इकोनॉमी को भी सतत् मजबूत करने में किया है वही गोण्डीयन इकोनॉमी के निर्यात केन्द्र "हड़प्पा और मोहनजोदड़ो" को पुरे विश्व मे सौंदर्य प्रसाधन के लिए प्रसिद्धी दिलाई थी । जो पाकिस्तान मे स्थित "चाहुन्दड़ो" उस दौर का सबसे बड़ा व प्रसिद्द "गारा नीय निर्यात केन्द्र था।© नारायण मरकाम


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