प्रकृति और पेन

Gond Gotul
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साथ चलना और चलते रहना ये हमने प्रकृति से सिखा है और प्रकृति भी यही सिखाती है क्यूंकि यह हमारे जीवन का खास हिस्सा है। जिसे हम जीते हैं जिसमे हम रिश्तो को बुनते हैं निभाते हैं पिरोते है सच कहूँ तो यही तो है दो लोगो के बीच की कड़ी जो हमें एक दुसरे से जोड़ कर रखता है साथ होने का एहसाश दिलाता है, प्रेम करना सिखाता है और यही प्रकृति का नियम है। जिसे हमारे पुरखो ने प्रकृति के बीच रहकर करोडो साल के अवलोकन के बाद तय करके कोया वंशीय जीवन शैली में शामिल किया है आज यही हमारा पहचान है जिसे हमे हमारे पुरखो ने संस्कृति और एक समृद सभ्यता के रूप में दिया है जिसमे हम कोया वंशीय लोग जीते है।

                         हम कोया वंशीय लोग है  हमारे रीती – रिवाज, संस्कृति प्राकृतिक हैं। और कोया मान्यता के अनुसार जब कोई व्यक्ति देह त्याग देता है तो वह व्यक्ति इस प्रकृति में विलीन हो जाता है और पेन रूप धारण कर लेता है, जिसे घर के पूर्व दिशा वाले एक कमरे में मटका में स्थापित कर घर के बहुओ को विरासत में दिया जाता है पेन रूपी मटके में घर के बहुए चावल रखती हैं और उसी चावल को खाना बनाने में प्रयोग करती हैं। घर के सभी शुभ कार्यो में  स्थापित पेन रूपी पुरखो के पास घर के बहुए दिए जलाते हैं और पेन रूपी पुरखो की सेवा करते हैं घर की बेटियां जब तीज – त्यौहार में शामिल होने आती है तो पेन रूपी पुरखो के लिए महुए फुल का रस साथ में लाती है और पेन को अर्पण करती हैं, यह कोया रीती का हिस्सा है जिसमे हम रिश्तो को बुनते हैं निभाते हैं यही एक कड़ी है जिसमे प्रकृति और पेन रूपी पुरखे का मेल – मिलाप होता है ।      

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1Comments

गोंड गोटुल का यह लेख आपको कैसे लगा, अपनी राय जरुर दें

  1. बेहतरीन लेख इस तरह लिखते रहना चाहिए! प्रेरणा प्राप्त होती रहेगी!!

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