प्रकृति और नार व्यवस्था

Gond Gotul
0
आज हम जिस गाँव, शहर, क़स्बा में रहते है वे सारे नार ( गाँव ) परम्परा के अनुसार ही बसाया गया है यह परम्परा कालांतर चली आ रही हैं जो आज तक हमारे बीच जिन्दा है जिसे हम पीढ़ी दर पीढ़ी स्वीकार करते है मानते हैं विश्वास रखते हैं



 प्रकृति और नार व्यवस्था

यह प्रकृति अनंत शक्तियों और नियमो पर आधारित है जिससे इस प्रकृति में कई तरह के बदलाव समय – समय पर होते रहते हैं और वह बदलाव हमारे लिए एक तरह से संकेत की तरह होता है जिसे हमारे कोयतोर समुदाय पेन रूपी पुरखो की मद्दत से समझता है

नार परम्परा की शुरुआत आज से कई बरस साल पहले हुआ है जब इन्सान घुमंतू प्रवृति छोड़ कर एक जगह बसना शुरू किया। आज हमारे बीच नार परम्परा से जुडी ऐसे कई किस्से – कहानियां है जिसमे प्रकृति के असहमति के कारण लोगो की जाने भी गई, और आज हमारे बीच ऐसे कई गाँव है जिसके अस्तित्व में आने से पहले ही लोग उस जगह को छोड़ चले गये क्यूंकि उस जगह के लिए प्रकृति ने सहमती नही दिया जिसके बाद कोई और उस जगह पर आकर रहने खाने लगा इस तरह से एक के बाद एक गाँव अस्तित्व में आने लगे।




नार परम्परा से जुडी एक कहानी
घने जंगल और पहाडियों से घिरा हुआ एक गाँव था गाँव को अस्तित्व में आये हुए दो तीन साल ही हुआ था इस लिए गाँव में ज्यादा लोग नही थे और साथ ही आस पास कोई दूसरा गाँव भी नही था। दुसरे गाँव जाने के लिए कई कोश पैदल चल कर जाना पड़ता था गाँव के लोग मिल जुल कर काम करते थे इस लिए गाँव के सभी लोग ख़ुश थे गाय बैल बकरियां सब मिल जुल कर चराते थे, एक दिन गाँव में शेर घुस आता है शेर गाँव में आकर कई गाय बैलो का शिकार करता है और धीरे – धीरे आदमियों को भी मारने लगता है इस तरह गाँव में धीरे धीरे शेर का खौप बढने लगता है क्युकी शेर दिन रात गाँव में आकर गाय बैल, बकरियों, आदमियों का शिकार करता है लोग दिन में भी अपने घर से निकलने के लिए डरते है । गाँव के लोग शेर को मारने भागने के लिए कई बार प्रयास करते है पर सफल नही हो पाते।  
उसी बीच पांच लोगो की परिवार गाँव के बस्ती से थोड़ी दूर रहने आता है वे लोग जंगल के किनारे पेड़ के नीचे झोपडी बनाकर रहने लगते है और इधर शेर गाँव में हाहाकार मचाये रहता है। जब गाँव के लोगो को पता चलता है की गाँव के जंगल किनारे पांच लोग रह रहें है तो गाँव के लोग उन लोगो से मिलने जाते है क्यूंकि वे लोग जंगल के किनारे पेड़ के नीचे बिना किसी डर भाव के रहते है और गाँव में शेर का दहशत रहता है जब गाँव वाले मिल कर अपनी आप बीती बताते है तो परिवार की एक बुजुर्ग महिला अपने चारो बेटो को शेर को मरने के लिए गाँव वालो का मद्दत करने के लिए बोलती है फिर चारो लोग गाँव वालो के साथ शेर को मारने भागने के लिए गाँव वालो के साथ गाँव के बस्ती तरफ निकल पडते है जब शेर गाँव में आता है तो चारो भाई अपने अपने तीर भले से हमला करते हैं शेर घायल होकर जंगल की ओर भागने लगता है चारो भाई भी उसके पीछे भागते है और जंगल में शेर को मार गिराते है     
इस तरह चारो भाइयों ने मिलकर गाँव को शेर की आतंक से मुक्त कराते है फिर गाँव वाले गाँव को उन चार भाइयों के हाथो सौफ देते है

आज भी गाँव में आये विपदा का समाधान गाँव बसाने वाले परिवार के लोग ही करते हैं      

प्रकृति और नार परम्परा का गहरा सम्बन्ध है जिसके अनुसार गाँव में कोई विपदा/संकट आता है तो उसका समाधान प्रकृति और पुरखो से अर्जी करके नार बसाने वाले के परिवार के लोग करते है। जब गाँव में कोई विपदा आता है या आने वाला रहता है तो यह प्रकृति कई तरह से गाँव के लोगो को संकेत देता है जैसे जंगल के जीव जंतु गाँव में आकर गाय - बैल, बकरियों को खाने लगते है, रोग का प्रकोप होता है, सुखा होता है, गाँव में एक साथ कई आदमियों की मृत्यु होता है , रात में पक्षियाँ रोने लगते है जिसके बाद प्रकृति और पुरखो से अर्जी किया जाता है।
गाँव में होने वाले शुभ कार्य भी नार परम्परा के अनुसार ही होता है जैसे शादी ब्याह, त्यौहार, नाम करण, धान बुवाई – मिंजाई आदि ।      



Post a Comment

0Comments

गोंड गोटुल का यह लेख आपको कैसे लगा, अपनी राय जरुर दें

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!