कोया जन जीवन की आधारशिला पुत्ती, और मौसम विज्ञान

Gond Gotul
0

आज हम जिस भू भाग में रहते हैं उसे कालांतर में गोडवाना, कोयामारी दीप कहा जाता था, इतिहास के उस कोयामारी भू – भाग में अंतत रहस्य व ज्ञान, मानव सभ्यता को सरल और  विकासशील बनाया है।


गोंड, गोडवाना, कोयामारी, को आधारशिला देने वाली भोडू या दीमक का घर, जिसे गोंडी भाषा मे पुति कहाँ जाता है, जो कोया सभ्यता के लोगो के जीवन शैली को सरल व प्रकृति को समझने में आसान किया है कोया समुदाय पुत्तीं से बहुत सीखते आया है  जिसे कोयतोर अपने जीवन शैली में कई वर्षो की जाँच, परख और अवलोकन के बाद शामिल किया है,
पुत्ती ज्ञान का केंद्र है हम कह सकते है कि पुत्ती से ही हमे एक रास्ता मिला एक नई सोच मिली, इस लिए गोंड, गोंडवाना, कोयामोरी दीप के लोग आदि काल से ही अपने आप को पुत्ती से जोड़े रखे
पुत्ती कई रहस्यों का केंद्र है जिसे जंगल के बीच एक और प्राकृतिक दुनिया भी कहा जा सकता है जिसका सीधा सम्पर्क जमीन के अंदर उस दुनिया से रहता है जहाँ तक इन्सान का पहुँच पाना मुश्किल है पुत्ती जमीन के सतह पर पानी के तेज बहाव और हवाओं की तेज रफ्तार से भी अपने आप को संतुलन बनाए रखता है। पुत्ती बदलते मौसम, भू- गर्भ जल स्रोत और ना जाने कितने प्रकार के रहस्यों से गिरा हुआ है। इस पुत्ती से आज के आधुनिक दुनिया को बहुत कुछ प्राप्त हुआ है, पुति की संरचना को देखे तो मानो ऐसा लगता है की आज जो मिट्टी के घर से लेकर ऊंची से ऊंची बिल्डिंग पुति के सिद्धांत पर बनी है और इसी ज्ञान का स्तेमाल हम आदिकाल से करते आ रहें हैं।

पुत्ती और मौसम का ज्ञान 

आज हम आधुनिक युग में जी रहें है इस लिए हमारे पास अत्याधुनिक तकनीक है माध्यम है जिससे हमें मौसम की जानकरी होती है पर सोचिये आज से करोडो साल पहले की सभ्यता के लोग मौसम की जानकारी कैसे रखते थे उनके पास क्या तकनीक थी जिससे वे मौसम की जानकरी रखते थे इन सारे सवाल का वृहद जवाब पुत्ती और प्रकृति में उपस्थित जीव जन्तुओ के क्रिया कलाप से जुडा हुआ है
कोयामारी दीप के लोग मौसम की जानकारी पुत्ती के बदलाव को देख कर रखते थे, पुत्ती समय समय पर अपने आप में बदलाव करते रहता है और पुत्ती का बदलाव एक तरह से आने वाली बाड़ का संकेत होता है पुत्ती का सम्पर्क भू – गर्भ  के उस छोर से रहता है जहाँ जीवन असम्भव सा होता है पर पुत्ती के अन्दर जीव बड़ी सरलता से जीवित रहते है, पुत्ती में रहने वाले जीव पुत्ती का निर्माण अधिकतर उचाई वाले जगहों पर करते है ताकि पुत्ती को पानी से बचाया जा सके पुत्ती की उचाई जमीन से 10 फिट तक की होती है और पुत्ती की उचाई मानसून में आने वाली वर्षा की मात्रा पर निर्भर करता है, कोयामारी दीप के कोयतोर लोग पुत्ती के इस रहस्य को समझने में सफल हुए और बरसात में भारी वर्षा से बाड़ जैसे हालात से निपटने के लिए पूर्व तैयारी पहले से कर लेते थे इसी तरह कोया समुदाय के लोग अपने जीवन शैली को सरल व सहज बनाने के लिए कई तौर तरीके खोज निकले थे जो कोयतोर जीवन शैली के लिए कारगर हुए

Post a Comment

0Comments

गोंड गोटुल का यह लेख आपको कैसे लगा, अपनी राय जरुर दें

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!