बस्तर के आदिवासियों के जन नायक इतिहास के पन्नो में कहीं खो गये
नेतानार का युवा बागा, जिसके नेतृत्व में साल 1910 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ शुरू हुआ था भूमकाल विद्रोह | भूमकाल विद्रोह पनपने का मुख्य कारण राजा रुद्र प्रताप थे जो अंग्रेजो के साथ मिलकर कालेन्द्र सिंह के खिलाफ साजिश रचे | कालेन्द्र सिंह को दीवान पद से हटा कर पंडा बैजनाथ को नया दीवान बना दिया जो अंग्रेजों के चापलूस थे।
इस निर्णय ने आदिवासिओ को राजा के विरुद्ध जाने पर मजबूर कर दिया और विद्रोह की चिंगारी उठी। इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए कालेन्द्र सिंह ने भूमकाल की भूमिका रची और उन्होंने नेतानार गांव के युवक बागा को युद्ध के नेतृत्व की लिए चुना। और आगे की रणनीति तैयार की। उस समय बस्तर का आधा से ज्यादा क्षेत्र भयानक अकाल से प्रभावित हुआ, जो भूमकाल विद्रोह को आवश्यक बना दिया। इसी भूमकाल विद्रोह में बागा ज़मींदारो और ब्रिटिश शासन के शोषण के खिलाफ भी विरोध छेड़ा जिसमे बागा ने अलग-अलग जनजातियों से नेता चुन कर पूरे बस्तर को एक कर दिया। इन नेताओं ने अपने - अपने क्षेत्र में संगठन बनाये ताकि सभी जगह से विद्रोह हो सके, बागा के डेब्रिधुर, सोनू माझी, मुंडी कलार, मुसमी हड़मा, धानु धाकड़, बुधरु और बुटुल बागा के विश्वसनीय थे। इन्होंने गांव-गांव जाकर लोगो को एकत्रित किया। विरोध चिन्ह के रूप में डारा-मिरी को उपयोग किया गया, जिसमें आम की टहनी पर लाल मिर्च को बांध दिया जाता था
जनवरी 1910 में ये सारे संगठन सक्रिय हो चुके थे। बागा के नेतृत्व में 2 फरवरी 1910 को पुसपल के बड़े बाजार में बाहरी व्यपारियो को मारा गया और 5 फरवरी को पूरा बाजार लूट लिया गया और आदिवासियों में बटवा दिया गया। बागा धुरवा ने ऐसे बहुत से बाजार को लुटवा कर बटवा दिया। 13 फरवरी तक लगभग दक्षिण-पश्चिम बस्तर बागा के समर्थकों के कब्जे में थी। यह बात अंग्रेजो तक पहुच चुकी थी, अंग्रजो ने सैन्य टुकड़ी के साथ कप्तान गेयर को राजा और दीवान की मदत के लिए भेजा। जिसके बाद 22 फरवरी के विरोध में 15 मुख्य क्रांतिकारी नेता गिरफ्तार किये गए, परंतु अंग्रेज सैनिक बागा को पकड नही पाए, कप्तान गेयर को गुण्डाधुर के साहस का अनुमान हो चुका था। बागा धुरवा के नेतृत्व में बस्तर के आदिवासियों ने कई लड़ाई लड़ी और जीत भी हासिल किये और इसी बीच बस्तर के इस वीर क्रांतिकारी बागा धुरवा को अंग्रेजों ने ही गुंडाधुर की उपाधि दी थी। दरअसल शहीद गुंडाधुर के विद्रोह करने के चलते ये नाम अंग्रेजों ने ही उन्हें दिया था।और इस तरह आज भी हमारे बीच हमारे जन नायक जिन्दा हैं


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