"इरूम मरा" ( महुआ )

Rakesh Darro
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आदिकाल में हमारे पूर्वज कड़कडाती ठण्ड से बचने के लिए "इरूम मरा" ( महुआ ) के बीज से तेल निकाल कर अपने शरीर में लगाते थे आइये "इरूम मरा" के बारे में जानते है ।

हिमयुग के कड कडाती ठण्ड का सामना करने की तकनीक और गोण्डीयन इकोनॉमी का प्रसिद्द निर्यात केंद्र और सिंधु सभ्यता का सौन्दर्य प्रसाधन इरूम मरा के बीज से निकलने वाला "नीय" मानव विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते आया है ।
"नीय"(तेल) मानव जाति की एक क्रान्तिकारी खोज है इसका श्रेय हम आदिवासियो को ही जाता है , यह तृतीय व चतुर्थ हिमयुग की सामना करने के लिए गुफाओ मे रहने की तकनिक की तरह महत्वपूर्ण है, इसकी शुरूआत "पुक नीय"(शहद तेल) से होकर "गारा नीय"(महुआ टोरी तेल) "जाड़ा नीय "(अरण्डी का तेल),"कोसुम नीय" (कोसुम तेल) आदि आदि , पर इन सब में से "गारा नीय"(टोरी तेल) ने विशाल गोंडवाना के जीवन को एक नव गति प्रदान किया है, "गारा नीय" भारी ठण्ड के उस दौर मे "कोया" गुफाओ से बाहर की जीवन शैली विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है दरअसल गारा नीय मे एक "जेली " की तरह लसलसा तेल बनता है जिसे शरीर पर लगाने से शारीरिक ऊष्मा के दर को बड़ा देता है वही दुसरी ओर बाह्य ठण्डकता को त्वचा के अन्दर प्रवाहीत होने से रोकता है इसी कारण "टोरी तेल" लगाने से ठण्डी मे गर्मी का एहसास होता है , दुसरी ओर ओमेगा -3 एसीड की उपस्थिति से इस तेल से "कुसीर" (सब्जी) फ्राई करने की तकनीक ने गोण्डीयन मानवो की शारीरिक संरचना व रोग प्रतिरोधक क्षमता को सतत् मजबूत बनाते गया है ।वही इसने गोण्डीयन इकोनॉमी को भी सतत् मजबूत किया है वही गोण्डीयन इकोनॉमी के निर्यात केन्द्र "हड़प्पा और मोहनजोदड़ो" को पुरे विश्व मे सौंदर्य प्रसाधन के लिए प्रसिद्धी दिलाई थी । पाकिस्तान मे स्थित "चाहुन्दड़ो" उस दौर का सबसे बड़ा व प्रसिद्द "गारा नीय निर्यात केन्द्र था।

मरकाम नारायन
(केबीकेएस प्रशिक्षण शिविरो से अनुग्रहित)

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